तुम मेरी आदत हो, तुम मेरा हिस्सा हो
मेरी बेमज़ा जिंदगी का दिलचस्प किस्सा हो
कैसे केह दूं मेरी हमदम
कि मुझे प्यार नहीं है तुमसे
बहुत से सच और कुछ झूठ कहे हैं मैने
तुम्हारे साथ से दूर सर्द मौसम भी सहे हैं मैंने
मगर वो बात जिसे ना लफ्ज़ कभी दिये हैं मैंने
उसे केहना आज मेरे लिये ज़रूरी है
कि बिन तुम्हारे ज़िंदगी मेरी अधूरी है
मैंनें हमेशा और हरदम ही चाहा है तुम्हें
तुमने माना या नहीं, मैंने सराहा है तुम्हें
यूं ही साथ चलते चलते शाम ए हयात आएगी
अपने बिछडने का पैगाम साथ लाएगी
मैं जानता हूं कि तुम साथ रहोगी तब तक
मेरे जिस्म में आखिरी सांस रहेगी जब तक
कैसे कह दूं मेरी हमदम के मुझे
प्यार नहीं है तुमसे