तेरी आँख का काजल बिखरे ,यह मुझे गवारा नही
जिस शख्स से तुम्हे नफरत हो ,वो मुझे प्यारा नही
जो मंजर तुम्हे नागवार हो ,वो मेरे वज़ूद पर आयेंगें
ख़ुशी तेरी दर्द मेरे वादा है ,करना मुझे किनारा नहीं
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दहलीज़ पे खड़ी तुम जब मेरा इन्तज़ार करती हो
किसी आशना रंगसाज़ की तू शाहकार लगती हो
फ़िज़ाओं मे गूंजती है कभी मुहब्बत भरी दास्तान
तो मेरी किसी ग़ज़ल का कोई अशआर लगती हो
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आ तलब करें अपने ज़हन से ,इक मुहब्बत का ख़्वाब
उसकी तामीर भी करें ताबीर भी करें उम्दा ओ नायाब
इक अहद भी हो गुजारेंगे हमराह ही हर्फ़े आखिर तक
मसर्रत मे ही बसर हो हयाते सफ़र हर लम्हा लाजवाब
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मेरे ज़ेहन में फखर हो तुम ,और रगों में नाज़ हो
कहीं दीवाने आशिक़ का कोई सुरीला साज़ हो
जिस को छुपा के रखा है जमाने से मैने उम्र भर
मेरी ज़िन्दगी का तुम, वो दिलकश हँसीं राज़ हो
Written By :: Ravinder Vij, Batala
Twitter :: @RAVINDER47